आज हम बात करने जा रहे हैं,रामायण की ऐसी पात्र के बारे में जिसे हो गया था .
यह एक कन्या ना होकर पानी में रहने वाली जलपरी थी..जो देखने में बेहद खूबसूरत थी…उसका शरीर सोने की तरह दमकता था…
इसलिए उसे सुनहरी(golden) जलपरी भी बोला जाता था..
इस जलपरी का नाम था स्वर्णमच्छा..यह कोई और नहीं लंका पति रावण की बेटी थी…
थाईलैंड की रामकियेन रामायण और कंबोडिया की रामकेर रामायण में रावण की बेटी के बारे में भी बहुत कुछ दिलचस्प और रहस्यात्मक बातें बताई गई हैं।
वाल्मिकी रामायण या तुलसीदास जी की रामचरित मानस के आलावा, अन्य देशों में अलग-अलग भाषाओं में रामायण को अपने-अपने तरीके से लिखा गया है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि भारत को छोड़कर बाकी देशों में लिखी गई रामायण में रावण की बेटी का जिक्र मिलता है।
थाईलैंड और कंबोडिया की रामायण में रावण के 7 बेटों का उल्लेख मिलता है जो रावण की तीन पत्नियों मंदोदरी, धन्यमालिनी और तीसरी पत्नी से हुए थे।
वहीं, रावण की बेटी के बारे में भी बताया गया है जिसका नाम सुवर्णमछा या सुवर्णमत्स्य था। वह मनुष्य और मछली का मिश्रण थी और बेहद सुंदर थी।
आधी मछली और आधी कन्या होने के कारण सुवर्णमत्स्य को जलपरी भी कहा जाता था। साथ ही, सोने का शरीर होने के कारण उसका नाम सुवर्णमछा पड़ा।
थाईलैंड और कंबोडिया की रामायण में रावण की बेटी को बेहद पूजनीय माना गया है। इसी कारण से वहां सुनहरी मछली को बेहद शुभ माना जाता है।
थाईलैंड और कंबोडिया की रामायण में एक उल्लेख यह भी है कि रावण की बेटी को हनुमान से प्रेम हो गया था. ओर वह हनुमान जी से विवाह करना चाहती थीं।
माना जाता है कि हनुमान जी के पसीने को जिस मकरी ने निगला था जिसके कारण हनुमान पुत्र मकरध्वज का जन्म हुआ वह मकरी रावण की बेटी ही थी।
हालांकि दुनियाभर में लिखी गई सभी रामायण वाल्मिकी रामायण से ही प्रेरित हैं और उन्हें को आधार मानते हुए अन्य रामायण कथाएं लिखी गई हैं।
जब नल और नीर के द्वारा लंका के लिए पुल बनाए जाने के तहत समुंदर पर पत्थर डाले जा रहे थे..तब अचानक से ही पत्थर अपने आप समुंदर से गायब होने लगे..
तब रावण ने सुवर्णमच्छा को ही सेतु बनाने के प्रयास को विफल करने का कार्य सौंपा था..
इसलिए स्वर्णमच्चा समुंदर में फेंके गए पथरो को गायब कर देती थी..
जब हनुमान जी को इस घटना के बारे में पता चला तो वे समंदर में उतरकर देखने लगे…की आखिर पुल निर्माण के लिए फेंके गए पत्थर कहा गायब हो रहे हैं..
हनुमान जी ने देखा की पानी के अंदर रहने वाले जीव उन पथरों को ले जाकर समुंदर की तह में छुपा रहे हैं..
जब हनुमान जी ने उन जीवो का पीछा किया..तो उन्होंने पाया की एक मत्स्यकन्या के कहने पर ही वो सभी जीव उन पथरों को वहा से हटा रहे हैं..
लेकिन जब हनुमान जी ने स्वर्णमच्छ को चुनौती देते हुए वो उसके सामने आए..
तब हनुमान जी के बल को देख कर वो उन पर मोहित हो गई..
हनुमान जी को स्वर्णमाछा के दिल की बात जानने में जायदा समय नहीं लगा..
तब हनुमान जी ने स्वर्णमाछा को पुल बनाने और उनके लंका जाने का कारण बताया..
और उसे ये समझाया की रावण ने देवी सीता के साथ कितना गलत किया हैं..
हनुमान जी की बात को समझते हुए स्वर्णमच्छा को अपनी की गई गलती पर बेहद पछतावा महसूस हुआ..
और फिर उसके बाद उसने हनुमान जी का रास्ता नहीं रोका..
और अपने किए के लिए उनसे माफी मांगी..
यही स्वर्णमछा जो रावण की पुत्री थी..थाईलैंड और कंबोडिया में इसे देवी की तरह पूजा जाता हैं..
और रामायण के पत्रों में इनका उल्लेख भी देखने को मिलता हैं..