शिव भक्त मंदोदरी

हम सब रावण की पत्नी मंदोदरी के बारे में तो जानते ही होंगे,लेकिन क्या आपको पता हे,की मंदोदरी रावण से नही बल्की शिव से विवाह करना चाहती थी।
कहानी के अनुसार अप्सरा मधुरा एक बार शिव भगवान के पास आई और उनके साथ विवाह करने की इच्छा जताई।

लेकिन शिव ने मधूरा के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
तो मधुरा ने शिव को मानने के लिए अपनी नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन शुरू कर दिया..
जब पार्वती ने ये सब देखा, तो उन्हे मधुरा पर बेहद क्रोध आया और उन्होने उसे एक मेंढकी बनने का श्राप दे दिया.
शिव भगवान को पार्वती का ऐसा करना अनुचित लगा।
लेकिन श्राप को वापिस नही लिया जा सकता था।
तो शिव भगवान के कहने पर पार्वती ने इस श्राप की सीमा बारह वर्ष तक कर दी।

शिव भगवान ने मंदोदरी को वरदान देते हुए कहा, की में तो तुमसे विवाह नही कर सकता,लेकिन एक दिन तुम्हारा विवाह मेरे सबसे बड़े भक्त से होगा।

पार्वती के दिए गए श्राप को बारह साल भुगतने के बाद मादुरी ने एक बच्ची के रूप में जन्म लिया.
जिसे मायासुर और हेमा ने पाला पोसा और इस बच्ची का नाम मंदोदरी रखा।
मंदोदरी देखने में बेहद रूपवान और सभी गुणों से संपन्न थी।
और अंत में शिव भगवान के दिए गए वरदान के अनुसार मंदोदरी का विवाह शिव के सबसे बड़े भक्त लंकापति रावण से हुआ।

 

मायासुर रावण के भवन में वास्तुकार  था और वो मंदोदरी के पिछले जन्म के बारे में जनाता था वो जानता था की मंदोदरी एक मेंढक योनि से स्त्री योनि में आई हैं..

इसलिए ही उसने मंदोदरी को ये नाम दिया था..

 

मंदोदरी संस्कृत भाषा के मंडूक शब्द से लिए गया नाम था जिसका अर्थ होता हैं.. मैडक..

 

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