मां धूमावती को भूखी देवी माना जाता है, इसीलिए कभी भी इनकी पूजा बिना भोग के नहीं करनी चाहिए. सूखी रोटी पर नमक लगाकर भी मां का भोग लगाया जा सकता है. कहा जाता है कि मां को रोटी भी बहुत प्रिय है. जिस पर भी मां की कृपा बरस जाती है उनके सभी कष्ट कट जाते हैं.
धूमावती माता को माता पार्वती का अत्यंत उग्र रूप माना जाता है. उनका स्वरूप बड़ा मलिन और भयंकर प्रतीत होता है.
धूमावती माता के बारे में मान्यता है कि उन्होंने पापियों का नाश करने के लिए अवतार लिया था. इसीलिए उन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है. धूमावती माता की पूजा धन प्राप्ति के लिए भी की जाती है. मां धूमावती का वाहन कौआ है.
मां धूमावती को भोग में मीठा नहीं बल्कि नमकीन चढ़ाया जाता है.
देवी पार्वती सुहागन से विधवा कैसे बनीं और क्यों धूमावती कहलाईं इसकी अजब-गजब कथा है। एक बार देवी पार्वती को बहुत तेज भूख लगती है और वह भगवान शिव से कुछ भोजन की मांग करती हैं। महादेव देवी पार्वती से कुछ समय प्रतीक्षा करने को कहते हैं। भगवान शिव भोजन की तलाश में निकलते हैं। धीरे-धीरे समय बीतने लगता है परंतु भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती है। देवी पार्वती भूख से व्याकुल हो उठती हैं। भूख से व्याकुल पार्वती जी भगवान शिव को ही निगल जाती हैं।
शिव(shiva) के लोप होते ही देवी पार्वती का स्वरूप विधवा जैसा हो जाता है। दूसरी ओर शिव के गले में मौजूद भयंकर विष के कारण देवी पार्वती का शरीर धुंआ जैसा हो जाता है। उनका स्वरूप अत्यंत विकृत और श्रृंगार विहीन दिखने लगता है। तब भगवान शिव माया द्वारा देवी पार्वती से कहते हैं कि देवी, धूम्र यानी धुंए से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती होगा। शंकर भगवान कहते हैं कि मुझे निगलने के कारण अब आप विधवा हो गई हैं इसलिए देवी अब आप इसी स्वरूप में पूजी जाएंगी। इस वजह से माता को धूमावती के नाम से जाना जाता है।
देवी पार्वती के इस स्वरूप के पीछे एक कथा यह भी है कि देवी पार्वती के मन में एक बार विधवा कैसी होती है यह जानने का विचार जगा और भगवान शिव से कहने लगीं कि वह वैधव्य को महसूस करना चाहती हैं। देवी पार्वती की इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए ही भगवान शिव ने यह लीला रची थी जिसमें उलझकर देवी पार्वती ने स्वयं ही महादेव को निगल लिया ..
माता धूमावती का रूप अत्यंत भयंकर हैं इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है। धार्मिक मान्यता है कि शंकर भगवान को खाने के कारण माता पार्वती विधवा हो गई थीं इसलिए माता धूमावती का यह स्वरूप विधवा का है। केश बिखरे हुए हैं। माता धूमावती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनके केश खुले रहते हैं। इनके रथ के ध्वज पर कौए का चिह्न है। इन्होंने हाथ में सूप धारण किया हुआ है। कौआ माता धूमावती का वाहन है।
धूमावती देवी का संबंध भूख से भी है. मां धूमावती हमेशा अतृप्त और भूखी रहती हैं. जिसके कारण वह दुष्ट दैत्य का संघार कर उनके उन्हें भोजन के रूप में ग्रहण करती हैं. शास्त्रों में बताया गया है कि मां देवी धूमावती (devi dhumavati) की पूजा करने से विपत्तियों का नाश होता है और समस्त रोगों से छुटकारा मिलता है.
मावती का मंत्र ” धुम धुम धूमावती स्वाहा ” है, जिसमें उनके बीज शब्द धुम की पुनरावृत्ति होती है। धूमावती की पूजा में इस्तेमाल किया जाने वाला यह मंत्र, कभी-कभी उनके यंत्र के साथ, ऐसा माना जाता है कि यह भक्त को नकारात्मकता और मृत्यु से बचाने वाला सुरक्षात्मक धुआँ बनाता है।
देवी की दस महाविद्यों में आने वाली धूमावती देवी की तपस्या काफी कठोर और सेवक के फलदाई सिद्ध होती है ..ऐसी मान्यता है की देवी की पूजा सुहागिन स्त्रियां नही कर सकती ओर उन्हे करनी भी नही चाहिए, लेकिन पुरषों पर ऐसा कोई भी नियम लागू नहीं होता है ..
बहुत से अघोरी और पुरुष साधक मां धूमावती की साधना कर उन्हे खुश करने की कोशिश करते है ..
देवी का ये रूप भले ही देखने मैं काफी विकराल है लेकिन देवी अपने भक्तो को अच्छे फल ही देती है..लेकिन कई बार साधक ये भूल जाते है की देवी शक्तियां कभी भी अनेक अनुरूप कार्य नही करती ओर इसी के चलते अपने लालच और निजी सुख को भोगने की इच्छा रख कई साधक तंत्र (tantra) मैं गलत तरीके से भी देवी का आहवान करते है ..लेकिन अगर भक्त देवी की पूजा अच्छे और साफ मन से करे तो दस महाविद्याओं में से एक धूमावती देवी शत्रुओं का नाश करती है , और शत्रुओं से छुटकारा दिलावती है.
धूमावती माता की पूजा से विपत्तियों का नाश होता है और समस्त रोगों से मुक्ति मिलती है.
धूमावती माता की पूजा से घनघोर दरिद्रता से मुक्ति मिलती है. धूमावती माता की पूजा से भूत-प्रेत और जादू-टोने से छुटकारा मिलता है.
धूमावती माता की पूजा से एकाग्रता बढ़ती है, सहानुभूति बढ़ती है, और चिंतन करने की क्षमता बढ़ती है.
धूमावती माता की पूजा से गुस्से की प्रवृत्ति कम होती है और नींद अच्छी आती है. धूमावती माता की पूजा से मानसिक तनाव कम होता है और स्मृति तंदुरुस्त रहती है.
धूमावती माता की पूजा से विपरीत परिस्थितियों में भी काम करने की ताकत मिलती है. धूमावती माता की पूजा रात में श्मशान में की जाती है.
माता की पूजा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को की जाती है. माता की पूजा के लिए पूरे दिन और रात उपवास रखना चाहिए और मौन रहना चाहिए.
धूमावती माता की पूजा के दौरान गीले कपड़े और पगड़ी पहननी चाहिए.
धूमावती माता की पूजा के दौरान देवी के मंत्र का जाप करते हुए होम करना चाहिए…
धूमावती माता के बारे में एक मान्यता है कि वे माता सती का भौतिक रूप हैं. मान्यता है कि जब माता सती ने अपने पिता के यहां हवन कुंड में खुद को जला दिया था, तब निकले धुएं से ही मां धूमावती प्रकट हुई थीं.
एक और मान्यता के मुताबिक, देवी पार्वती के शरीर पर शिव के गले में मौजूद विष की वजह से धुंआ छा गया था और उनका रूप विकृत हो गया था. तब भगवान शिव ने उन्हें धूमावती नाम दिया और कहा कि अब वे विधवा हो गई हैं.
धूमावती माता को माता पार्वती का अत्यंत उग्र रूप माना जाता है. उनका स्वरूप बड़ा मलिन और भयंकर प्रतीत होता है.
सनातन धर्म में शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में सातवां अवतार द्यूमवान नाम से विख्यात है। इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती devi dhumavati माना गया हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश के दतिया में मौजूद मां धूमावती देवी के मंदिर को ही देश-दुनिया में भगवती धूमावती का एकमात्र मंदिर माना जाता है।
पीताम्बरा पीठ में है माता का मंदिर(temple)
कहा जाता है कि chatisgarh के बिलासपुर दतिया में मौजूद विश्वप्रसिद्ध मां पीताम्बरा पीठ के स्थान पर कभी श्मशान हुआ करता था, लेकिन आज यहां एक विश्वप्रसिद्ध मन्दिर है। स्थानीय लोगों का मानना है कि मुकदमे आदि के सिलसिले में मां पीताम्बरा का अनुष्ठान सफलता दिलाने वाला होता है।
पीताम्बरा पीठ के इसी प्रांगण में ही ‘मां धूमावती देवी’ का भी मन्दिर है, जिसके संबंध में मान्यता है कि यह भारत में भगवती धूमावती का एक मात्र मन्दिर है।
बताया जाता है कि पीताम्बरा पीठ की स्थापना सन् 1935 में स्वामीजी महाराज ने की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार स्वामी महाराज बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर यहां एक स्वतंत्र अखण्ड ब्रह्मचारी संत के रूप में निवास करते थे। स्वामीजी प्रकांड विद्वान् व प्रसिद्ध लेखक थे। उन्होंने संस्कृत, हिन्दी में कई किताबें भी लिखी थीं।
स्वामीजी महाराज ने ही इस स्थान पर ‘बगलामुखी देवी’ और धूमावती माई की प्रतिमा स्थापित करवाई थी।
पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में बना मां भगवती धूमावती देवी मन्दिर देश-दुनिया में एकलौता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मन्दिर परिसर में मां धूमावती की स्थापना करने के लिए अनेक विद्वानों ने स्वामीजी महाराज को मना किया था। तब स्वामी जी ने कहा कि- “मां का भयंकर रूप तो दुष्टों के लिए है, भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं।”