कुंती का कर्ण से अनुरोध और कर्ण की स्वीकृति
दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण के संधि प्रस्ताव को ठुकराने के बाद, जब युद्ध की स्थिति स्पष्ट हो गई, तब कुंती ने कर्ण को पांडवों के पक्ष में लाने का प्रयास किया। उन्होंने कर्ण को उसके जन्म का रहस्य बताते हुए पांडवों से मिल जाने की सलाह दी।
कर्ण ने दुर्योधन का पक्ष चुनने का निर्णय किया और कुंती को बताया कि यदि वह पांडवों के पक्ष में आ गए, तो लोग समझेंगे कि उन्होंने अर्जुन से डरकर पक्ष बदला। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने अर्जुन के खिलाफ युद्ध करने का निर्णय लिया।
कुंती ने कर्ण को अर्जुन से युद्ध की अनुमति दी, लेकिन उन्होंने कर्ण से अपने अन्य चार पुत्रों का जीवन सुरक्षित रखने की याचना की।
कर्ण का वचन और कुंती की आश्वस्ति
कुंती की यह याचना सुनकर कर्ण ने वचन दिया कि वह अर्जुन के अलावा किसी भी अन्य पांडव का वध नहीं करेंगे। कर्ण ने माता कुंती को आश्वस्त किया कि वह अवसर मिलने पर भी पांडवों में से किसी अन्य को नहीं मारेंगे।
उद्धरण –
तब कुन्तीने चौड़ी छातीवाले कर्णसे फिर कहा—‘बेटा! तुम इच्छानुसार अर्जुनसे युद्ध करो; किंतु अन्य चार भाइयोंको अभय दे दो’।। ३१।।
इतना कहकर माता कुन्ती थर्थर काँपने लगीं। तब बुद्धिमान् कर्णने हाथ जोड़कर मातासे कहा—‘देवि! तुम्हारे चार पुत्र मेरे वशमें आ जायँगे तो भी मैं उनका वध नहीं करूँगा। तुम्हारे पाँच पुत्र निश्चित रूपसे बने रहेंगे। यदि कर्ण मारा गया तो अर्जुनसहित तुम्हारे पाँच पुत्र होंगे और यदि अर्जुन मारे गये तो वे कर्णसहित पाँच होंगे’।। ३२-३३।